Through this poem, we give a message to the children that Hindi language is very important for them and they should understand and learn it. Apart from this, through this poem, we also teach children about the ideals that a good boy or girl should have. Hindi Poem for Class 7 this poem tells them about good behavior, manners, understanding and healthy state of mind both in their school and at home. In short, this poem enables children to move forward in their lives with a full cultural experience.

Hindi Poem for Class 7
Today we have brought before you a very beautiful Hindi poem, which has been made for children. This poem teaches children about values, ethics and good manners. Hindi Poem for Class 7 this poem is a part of our culture and heritage which we should always cherish. so let’s start the poem
Hindi Poems for Class 7 for Kids
1. हम पंछी उन्मुक्त गगन के
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबौरी
कनक-कटोरी की मैदा से।
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं।
तरु की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नीले नभ की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा -होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सांसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं तो,
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
….शिवमंगल सिंह
2. आओ मिलकर पेड़ लगाएं

आओ मिलकर पेड़ लगाएं
पृथ्वी को हरा-भरा बनाए
पेड़ों के मीठे फल खाएं
फूलों की सुगंध फैलाएं
पेड़ों से छाया हम पाएं
चारों ओर प्राणवायु फैलाएं
मिट्टी को उपजाऊ बनाएं
भूजल स्तर को यह बढ़ाएं
बारिश का पानी ये ले आए
मिट्टी के कटाव को ये बचाएं
पक्षी इनपर अपना नीड़ बनाए
प्रदूषण से ये हमें बचाएं
जब पेड़ों से लाभ इतना पाएं
तो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए
इन पेड़ों को क्यूं सताए
इनके संरक्षण की कसम हम खाएं
आओ मिलकर पेड़ लगाएं
आओ मिलकर पेड़ लगाएं…
….पूजा महावर
3. जब-जब ठंडी आती है
जब-जब ठंडी आती है,
हमको बड़ा सताती है,
राते बड़ी बड़ी देकर,
दिन छोटे कर जाती है।
सारा दिन बस रजाई में,
आलस की अंगडाई में,
जाने कब फुर हो जाता है,
तपते की कढाई में।
सूरज चाचा जी भी,
हमको बहुत सताते है,
बादल में छिप जाते है,
धूप नही खिलाते हैं।
कब ये ठंडी जाएगी,
रजाई कम्बल टोपी,
और स्वेटर का बोझ,
हमसे दूर भगाएगी।
….निधि अग्रवाल
Patriotic Poem in Hindi for Class 7
4. चिड़िया और चुरुंगुन
छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात,
और सुनी जो पत्ते हिलमिल
करते हैं आपस में बात;
मां, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
डाली से डाली पर पहुँचा,
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झुककर जाना मूल;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
“नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
कच्चे-पक्के फल पहचाने,
खाए और गिराए काट,
खाने-गाने के सब साथी
देख रहे हैं मेरी बाट;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
उस तरु से इस तरु पर आता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोई अंदर से कहता है।
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
“आज सुफल हैं तेरे डैने,
आज सुफल है तेरी काया’
….हरिवंशराय बच्चन
5. सुन्दर फूल गुलाब के
सुन्दर फूल गुलाब के,
देखो कैसे हँसते हैं।
लाल गुलाबी काले पीले,
मन को अच्छे लगते हैं।।
धूप आग सी पड़ती हो,
चाहे आंधी चलती हो।
ओलों की वर्षा हो चाहे,
हिम तुषार भी पड़ती हो।।
कैसी भी बाधा हो चाहे ,
मौत खड़ी हो खुद आकर।
फूल सदा ही हँसते रहते,
बिना झिझक निर्भय होकर।।
बन उपवन में कहीं देख लो,
मुस्काते ही पाओगे।
मीठी मीठी मन्द गन्ध से,
तन मन महका पाओगे।।
बच्चो, तुम भी बन सकते हो,
इन गुलाब से सुन्दर फूल।
पर सेवा, उपकार में करना,
आलस मित्रों कभी न भूल।।
चाहे मुसीबत कैसी आए,
जी को मत छोटा करना।
अचल हिमालय से दृढ़ बनकर,
बिहँस सामना तुम करना।।
….डॉ. गिरीशदत्त शर्मा
6. विद्या देते दान गुरूजी
विद्या देते दान गुरूजी ।
हर लेते अज्ञान गुरूजी ॥
अक्षर अक्षर हमें सिखाते ।
शब्द शब्द का अर्थ बताते ।
कभी प्यार से कभी डाँट से,
हमको देते ज्ञान गुरूजी ॥
जोड़ घटाना गुणा बताते ।
प्रश्न गणित के हल करवाते ॥
हर गलती को ठीक कराते,
पकड़ हमारे कान गुरूजी ॥
धरती का भूगोल बताते ।
इतिहासों की कथा सुनाते ॥
क्या कब क्यों कैसे होता है,
समझाते विज्ञान गुरूजी ॥
खेल खिलाते गीत गवाते ।
कभी पढ़ाते कभी लिखाते ॥
अच्छे और बुरे की हमको,
करवाते पहचान गुरूजी ॥
….शिव नारायण सिंह
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Hindi Poem for Class 7 Recitation
7. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला
वीरों को हरषाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,
काँपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जावे भय संकट सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
हो स्वराज जनता का निश्चय,
बोलो भारत माता की जय,
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
आओ प्यारे वीरों आओ,
देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इसकी शान न जाने पावे,
चाहे जान भले ही जावे,
विश्व-विजय करके दिखलावे,
तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
….श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’
8. राना-ए-बिस्मिल

बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।
लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।
खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।
कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।
यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।
….राम प्रसाद बिस्मिल
9. पेड़ पानी और धूप
यह मुझको समझाओ माँ
सोचो और बताओ माँ
भूख नहीं क्या लगती इनको
पेट कहाँ दिखलाओ माँ
पौधे पानी पीते हैं
पानी पर ही जीते हैं
अब तुम उनके पानी को
मिट्टी से छुडवाओ माँ
धूप में उनको रखती हो
मैं जाऊं तो डरती हो
भेदभाव इतना जो करती
कारण भी बतलाओ माँ
कितनी सुंदर बात कही है
चिंता तेरी खूब भली है
पौधों की दुनिया के राज
बतलाऊं जो बात चली हैं
खाना भी ये खाते हैं
खुद ही उसे पकाते है
धूप, हवा, पानी सब मिलकर
भोजन ही बन जाते है
मिट्टी जो पानी पीती है
पौधों को दे देती हैं
जड़ इनकी मिट्टी के अंदर
धीरे धीरे पानी पीती हैं.
…शेफाली शर्मा
Hindi Poem for Class 7 for Competition
10. अनसुनी करके
अनसुनी करके तेरी बात
न दे जो कोई तेरा साथ
तो तुही कसकर अपनी कमर
अकेला बढ़ चल आगे रे–
अरे ओ पथिक अभागे रे।
देखकर तुझे मिलन की बेर
सभी जो लें अपने मुख फेर
न दो बातें भी कोई क रे
सभय हो तेरे आगे रे–
अरे ओ पथिक अभागे रे।
तो अकेला ही तू जी खोल
सुरीले मन मुरली के बोल
अकेला गा, अकेला सुन।
अरे ओ पथिक अभागे रे
अकेला ही चल आगे रे।
जायँ जो तुझे अकेला छोड़
न देखें मुड़कर तेरी ओर
बोझ ले अपना जब बढ़ चले
गहन पथ में तू आगे रे–
अरे ओ पथिक अभागे रे।
तो तुही पथ के कण्टक क्रूर
अकेला कर भय-संशय दूर
पैर के छालों से कर चूर।
अरे ओ पथिक अभागे रे
अकेला ही चल आगे रे।
और सुन तेरी करुण पुकार
अंधेरी पावस-निशि में द्वार
न खोलें ही न दिखावें दीप
न कोई भी जो जागे रे-
अरे ओ पथिक अभागे रे।
तो तुही वज्रानल में हाल
जलाकर अपना उर-कंकाल
अकेला जलता रह चिर काल।
अरे ओ पथिक अभागे रे
अकेला बढ़ चल आगे रे।
….रवीन्द्रनाथ टैगोर
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11. थोड़ी धरती पाऊँ
बहुत दिनों से सोच रहा था,
थोड़ी धरती पाऊँ
उस धरती में बाग-बगीचा,
जो हो सके लगाऊँ।
खिलें फूल-फल, चिड़ियाँ बोलें,
प्यारी खुशबू डोले।
ताज़ी हवा जलाशय में
अपना हर अंग भिगो ले।
लेकिन एक इंच धरती भी
कहीं नहीं मिल पाई।
एक पेड़ भी नहीं, कहे जो
मुझको अपना भाई।
हो सकता है पास, तुम्हारे
अपनी कुछ धरती हो
फूल-फलों से लदे बगीचे
और अपनी धरती हो।
हो सकता है छोटी-सी
क्यारी हो, महक रही हो
छोटी-सी खेती हो जो
फसलों में दहक रही हो।
हो सकता है कहीं शांत,
चौपाए घूम रहे हों।
हो सकता है कहीं सहन में,
पक्षी झूम रहे हों।
तो विनती है यही,
कभी मत उस दुनिया को खोना
पेड़ों को मत कटने देना,
मत चिड़ियों को रोना।
एक-एक पत्ती पर हम सब
के सपने सोते हैं।
शाखें कटने पर वे भोले,
शिशुओं सा रोते हैं।
पेड़ों के संग बढ़ना सीखो,
पेड़ों के संग खिलना
पेड़ों के संग-संग इतराना,
पेड़ों के संग हिलना।
बच्चे और पेड़ दुनिया को
हरा-भरा रखते हैं।
नहीं समझते जो, दुष्कर्मों
का वे फल चखते हैं।
आज सभ्यता वहशी बन,
पेड़ों को काट रही है।
जहर फेफड़ों में भरकर
हमं सब, को बांट रही है।
….सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
12. हम धरती के लाल
देश हमारा, धरती अपनी,
हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएँगे,
नया इंसान बनाएँगे।
सुख-स्वप्नों के स्वर गूंजेंगे,
मानव की मेहनत पूजेंगे।
नयी कल्पना, नयी चेतना की
हम लिए मशाल-
समय को राह दिखाएँगे।
एक करेंगे हम जनता को,
सीचेंगे समता ममता को।
नयी पौध के लिए पहन कर
जीवन की जयमाल-
रोज त्योहार मनाएँगे।
सौ-सौ स्वर्ग उतर आएँगे,
सूरज सोना बरसाएँगे,
दूध पूत के लिए बदल देंगे
तारों की चाल-
नया भूगोल बनाएँगे।
नया संसार बसाएँगे।
….शील
13. पानी और धूप
अभी अभी थी धूप, बरसने
लगा कहाँ से यह पानी
किसने फोड़ घड़े बादल के
की है इतनी शैतानी।
सूरज ने क्यों बंद कर लिया,
अपने घर का दरवाज़ा।
उसकी माँ ने भी क्या उसको,
बुला लिया कहकर आजा।
जोर-जोर से गरज रहे हैं,
बादल हैं किसके काका।
किसको डांट रहे हैं, किसने,
कहना नहीं सुना माँ का।
बिजली के आँगन में अम्मा,
चलती है कितनी तलवार।
कैसी चमक रही है फिर भी
क्यों खाली जाते हैं वार।
क्या अब तक तलवार चलाना
माँ वे सीख नहीं पाए।
इसीलिए क्या आज सीखने
आसमान पर हैं आए।
एक बार भी माँ यदि मुझको
बिजली के घर जाने दो
उसके बच्चों को तलवार
चलाना सिखला आने दो।
खुश होकर तब बिजली देगी,
मुझे चमकती सी तलवार।
तब मां कोई कर न सकेगा,
अपने ऊपर अत्याचार।
पुलिसमैन अपने काका को
फिर न पकड़ने आएँगे
देखेंगे तलवार दूर से ही,
वे सब डर जाएँगे।
अगर चाहती हो माँ काका
जाएँ अब न जेलखाना
तो फिर बिजली के घर मुझको
तुम जल्दी से पहुँचाना।
काका जेल न जाएँगे अब
तुझे मँगा दूँगी तलवार
पर बिजली के घर जाने का
अब मत करना कभी विचार।
….सुभद्रा कुमारी चौहान
Unseen Poem for Class 7
14. चल मरदाने

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
….हरिवंशराय बच्चन
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